आ भी जा अब, कि सांझ ढलने को है,
तनहा रात का सन्नाटा, मुझे डंसने को है,
मेरे माझी तेरे दीदार को तरसा बहुत हूँ मैं,
इक दरस कि प्यास है, प्यासा बहुत हूँ मैं।
बेवजह बहुत चला हूँ इस लंबे सफर में,
तू हाँथ मेरा थाम के, कोई तो वजह दे।
खो जाऊं इससे पहले तू थाम ले मुझे,
कहीं बदल ना जाए ये सफर सिफ़र में।
आ जा कि अब तो सांस भी मुश्किल से आ रही है,
उम्मीद भी अब मुझसे दामन छुडा रही है,
बुझने को है अब, ये चिराग आस का,
रिश्ता बड़ा अजीब है प्यासे से प्यास का,
कुछ तो सिला मिले मुझे मेरे इन्तजार का.....
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